१२ जुलाई २०२४: कैन्सर के विषय पर अध्ययन कर रहा हूँ कुछ वर्षों से। किसी निष्कर्ष तक भले ना पहुँच सका, बहुत कुछ समझने में कामयाब ज़रूर हुआ हूँ। (वैसे भी अंतिम निष्कर्ष जैसी कोई बात विज्ञान में नहीं होती है। सतत विकसित होते रहने का नाम ही विज्ञान है।) कुछ बातें बहुत सोचने पर मजबूर करती हैं। कैन्सर के हृदय रोग से सम्बंध के बारे में मेरा अवचेतन मन आश्वस्त है। चेतना की दुनिया में इसे ढंग से प्रस्तुत करने की उम्मीद लिए कोशिश कर रहा हूँ। दरअसल atherosclerosis एक तरह का कैन्सर ही है। या कह लीजिए कि कैन्सर बाहरी अंगों का atherosclerosis है। और दोनों रोगों में पुनरुज्जीवन की परिस्थितियाँ आंशिक रूप में नज़र आती है। तो क्या, धमनियों में प्लाक का जमना और कैन्सर का ट्यूमर पुनरुज्जीवन की अधूरी प्रक्रिया का प्रतीक है? क्या सूत्रकणिकाओं में म्यूटेशन के कारण स्थिति कुछ ऐसी बनती है कि हृदय से बाहर हृदय या अन्य किसी अंग के पुनरुज्जीवन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है?
६ अगस्त २०२३: सूत्रकणिकाओं (माइटोकांड्रिया) को लेकर मेरी जिज्ञासाओं का अंत नहीं। काफ़ी अध्ययन कर चुका हूँ इनके बारे में। फिर भी लगता है कि अभी बहुत कुछ और जानना बाक़ी है। एक अवधारणा अवश्य बनती है कि इन्हीं में हम प्राणियों के जीवन के ज़्यादातर रहस्य छिपे हैं। मैं तो इतना तक कहूंगा कि हमारे सेल भी इन्हीं जीवों ने बनाएं हैं। जी हाँ, ‘जीव’ शब्द का इस्तेमाल मैं यहाँ बहुत सोच-समझकर ही कर रहा हूँ। सूत्रकणिकाओं के पूर्वज बैक्टीरिया से अवतीर्ण हुए हैं यह बात वैज्ञानिक महलों में सर्वविदित है। अत: मैं इन्हें हमारे सेल के भीतर बसने वाले ‘जीव’ समझता हूँ। दरअसल मेरा एक शोधपत्र, जो सूत्रकणिकाओं का हमारे जीवन का मूल इकाई होने का दावा करता है, इस समय एक जर्नल में प्रकाशन हेतु विचाराधीन है। अपने आप में यह भी एक अभूतपूर्व दावा है। इसलिए ज़ाहिर है कि इसके प्रकाशन में कई बाधाएं आएंगी।?न केवल हमारे प्रकार के सेल का उद्भव, बल्कि जीवविज्ञान के और भी कई “big problems” का समाधान मुझे सूत्रकणिकाओं में नज़र आता है। जैसे प्राणियों के प्रजनन में सेक्स की प्राथमिकता, कैंसर का मूल कारण, हम जैसे जीव का जन्म और मृत्यु, इत्यादि।
५ अगस्त २०२३: जीवन क्या है? बड़ा पेचीदा प्रश्न है यह। कई विद्वानों ने इस विषय पर माथापच्ची की है। लेकिन अब तक इस के किसी उत्तर पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई है। तो क्या इस प्रश्न का उत्तर खोजना हम मनुष्यों के निरीक्षण और विवेचना की क्षमता से परे है? क्योंकि हम खुद इस मामले में विषयवस्तु का हिस्सा है। ख़ुद से बाहर निकल निरीक्षण और विवेचना करने की शायद ज़रूरत है। मुझे कभी कभी लगता है कि जिसे हम जीवन समझते है उसके आदि और अंत को देख पाना हमारे लिए संभव नहीं हैं। तभी हम जीवन के उद्गम (origin ) को समझ पाने में असमर्थ है। शायद जो हम अनुभव करते हैं वह केवल बीच का हिस्सा है। हमारे अस्तित्व के बाहर के reference frame से देखने पर शायद यह कहाँ से और कैसे शुरू हुआ इसके बारे में कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है। शायद जीवन एक ऐसे संभावित ऊर्जा (potential energy) की अभिव्यक्ति है जिसका उद्गम किसी दूसरे reference frame में हुआ था और हम केवल उस अभिव्यक्ति को जीने को बाध्य है।
५ अगस्त २०२३: उत्सुक रहता हूँ बहुत मैं। कई जिज्ञासाएं मन में लेकर दिन गुज़ारता हूँ। कुछ हल भी मन में उपजते हैं, हालांकि जानता हूँ कि सारे हल समय की कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे। फिर भी उन्हें खोने का डर रहता है। इसीलिए सोचा कि कुछ जिज्ञासाओं को और कुछ कल्पनाओं को लिख रखूँ। मैं ख़ुद शायद हर जिज्ञासाओं पर काम करने का समय ना पाऊं अपने जीवनकाल में। लिखी रहेगी तो प्रश्न उजागर तो होंगे सबके सामने। यही सोचकर इस श्रृंखला की शुरुआत कर रहा हूँ यहाँ। देखें कहाँ तक यह पहुँचती है यह श्रृंखला।