कहीं से उठकर फिर एक दिन चला आता है
रिवाज़ों को गोद लिए पलछिन चला आता है
इस उम्र में अच्छा नहीं लगता है जो दस्तूर
न जाने क्योंकर भला तुम बिन चला आता है
बड़ा हो गया हूँ अब तारीख दस्तक नहीं देते
दुआ बूँद में भर आँसू लेकिन चला आता है
छुप जाती हो तुम फिर कभी न आने के लिए
औ’ बचपन मेरा दस तक गिन चला आता है